Saturday, March 27, 2010

इस हफ्ते पटियाला कोर्ट ने इंजिनियर सत्येन्द्र दुबे हत्या मामले में तीन आरोपियों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई है. भले ही सुनने में लग रहा हो की सभी दोषियों को सजा हुई है लेकिन सच कही इससे परे है... मै किसी और विस्तार में जाने के पहले सबसे पहले बताना चाहूगा कि यह केस क्या था.

सत्येन्द्र दुबे जी "आई आई टी" कानपुर से पास एक बड़े ही होनहार इंजीनिअर थे. इन्होने कॉलेज से निकल कर "National Highways Authority of India - NHAI" ज्वाइन किया था. यह वो इन्सान थे जिन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की सजा अपनी मौत दे कर चुकानी पड़ी. सत्येन्द्र जी ने NHAI में फैले आकंठ भ्रष्टाचार को उजागर करना चाह था. वह अपने "NHAI" में नौकरी के दौरान हमेशा ईमानदारी के लिए लड़ते रहे.

वाकया गया जिले का है जब वो "NHAI" में "Project Director" के तौर पर कम कर रहे थे, इन्होने "NHAI" में फैले उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई. जब सत्येन्द्र जी से कुछ न बन पड़ा तो इन्होने तत्कालीन प्रधान मंत्री जी जो पत्र लिख कर इस भ्रष्टाचार को उजागर किया. शायद उनके ईमानदारी के लिए लड़ने के इस जज्बे को आज का ताकतवर भ्रष्ट तंत्र स्वीकार नहीं कर पाया.

27 November 2003 को, गया सर्किट हाउस के सामने सत्येन्द्र जी की गोली मर कर हत्या कर दी गई. यह एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा थी. भ्रष्ट नेता और अधिकारी नहीं चाहते थे की सत्येन्द्र उनकी बेईमानी की कमाई में राह का रोड़ा बने. यहाँ पुलिस और सी बी आई का रवैया गौर करने वाला रहा, उन्होंने इस साजिश को एक लूटपाट की घटना की तरह लिया. सी बी आई ने तीन लोगो के खिलाफ चार्ज-शीट दायर करी इन लोगो ने बड़े और ताकतवर लोगो के कहने पर सत्येन्द्र जी की हत्या करी थी. वह सभी लोग साफ साफ बच गए जिनका दिमाग था इस साजिश के पीछे. वह लोग जिनके आँख की किरकरी थी सत्येन्द्र जी की ईमानदारी और जिन्होंने भाड़े के हत्यारों को खरीद कर सत्येन्द्र जी की हत्या करवाई.

ये लोग आज भी कानून की पहुच से दूर पूरी बेईमानी से अपना कम कर रहे है. यह सब तब हो रहा है जब इस केस में प्रधानमंत्री जी का सीधा दखल था और देश की सर्वोच्य खोजी संस्था से बी आई इस कांड की खोजबीन कर रही थी. इन सब बातो से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की हत्यारे कितने पहुच वाले और ताकतवर है.

दुर्भाग्य है, की आज कल देश के सारे न्यूज़ चैनल फ़िल्मी सितारों और आई पी एल की तो पल पल की खबर देते है लेकिन सच और ईमानदारी के लिए शहादत देने वालो की कोई खबर उनके समाचारों का हिस्सा नहीं बन पाती है...

ऑपरेशन ग्रीन हंट और अद्दिवासी समाज

सरकार ने बड़े ही जोर शोर के साथ देश के एक बड़े हिस्से में ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया है. देश के लिए इससे जयादा दुर्भाग्य की बात कुछ और नहीं हो सकती जब देश की सेना को अपने ही लोगो के ऊपर बन्दूक तन्नी पड़े, कोई भी मरे इस ऑपरेशन में खून दोनों तरफ भारतीयों का ही बहेगा.


मेरे विचार से ये एक बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया फैसला है. सरकार ने इस बहुत ही बड़ी समस्या का बड़ा ही फौरी हल निकला है, की फैसला बन्दूक से कर लेते है की कौन जीतता है. माननीय गृहमंत्री जी ने यह समझाने के बजाये की नक्सलवाद की जड़ कहाँ से शुरू होती और कहाँ तक जाती है, सेना को आदेश दे दिया की मरते जाओ जब तक सब ये न मन ले की सरकार के द्वारा चलाई जा रही सारी गतिविधिया एक दम सही है. ये वही सरकार है जो गाँधी के नाम पर जीत के सत्ता में आई है, लेकिन शायद आज गाँधी भारत सरकार की नोट में जयादा और उनके व्यव्हार में कम हैं.


गौर करने लायक बात यह है की नस्सलवाद उन इलाको में जयादा फैला है जो इलाके देश में सब से जयादा खनिज सम्पदा से भरे पूरे है, लेकिन साथ ही साथ वहां रहने वाली लोगो की ग़रीबी और बेरोजगारी चरम पर है. यह वो इलाके है जिनका प्राइवेट और सरकारी कंपनियों ने पूरा दोहन किया है लेकिन छोड़ा सिर्फ भुखमरी और गरीबी है. इन इलाको में वही के लोगो को उनकी जमीन और घर से बाहर निकल दिया है. हर तरफ खदान माफिया, जंगल माफिया और भू माफिया का राज है. जिस किसी ने सरकार या इन माफियाओ के खिलाफ आवाज उठाई वो या तो जेल में डाल दिए गए या फिर मर दिए गए.


मैं नस्सलवादियों को आतंकवादी नहीं कहूँगा वो वो मजबूर लोग है जिनकी जब किसी ने नहीं सुनी तो अपने हाथो में बन्दूक उठाली. वो लोग जिनकी जमीने हथिया ली गयी हो, वो लोग जिनके घर उजाड़ दिए गए हो, वो लोग जिनके बच्चे भूखे मर रहे वो और वो जिन्होंने जब आवाज उठाई तो जेल में डाल गए हो, वो मेज पर आ कर सरकार से बात नहीं करेगे. हम एक पूरी तरह से बर्बाद लोगो से वार्ता की उम्मीद करते है वो यह माना नाजायज ही होगा.


हम बंद कमरों में बैठ के टीवी पर खबर सुनते है की नस्सलियो ने ट्रेन की पटरिया उखड दी और समझ बैठते है की नस्सलियो ने बड़ा गलत किया. हमें कोई भी विचार उन गरीब और मजबूर लोगो के खिलाफ बनाने के पहले खुद को उनकी जगह रखा होगा और शायद तब हम उनका दर्द उनका पागलपन समझ पाएगे.


सरकार को अगर कुछ ख़तम करना ही है तो पहले वहां का माफियावाद, भ्रष्टाचार, अत्याचार ख़तम करे और फिर देखते है की उन इलाको में क्या रहता है, नस्सलवाद या राष्ट्रवाद.

Wednesday, March 17, 2010

महिला आरक्षण बिल के पेच

केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पास करवा कर अवश्य ही अपने इरादे जाता दिए है। सरकार की इस उपलब्धि के लिए सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्षी दल भी बराबर के हकदार है। केंद्र ने जिस तरह से इस प्रस्ताव को लोकसभा में पास करवाया है, कई लोग इस तरीके को अलोकतांत्रिक कह रहे हैं, लेकिन जिस तरह का विरोध बागी सांसद जन कर रहे थे उसको भी कोई लोकतान्त्रिक नहीं कह सकता है।
भले ही सरकार ने यह बिल राज्यसभा में पास करवा लिया हो लेकिन लोकसभा में इसको पास करवाना अभी भी एक दूर की कौड़ी है। केंद्र निश्चय ही इस बिल के लिए अपने पुराने सहयोगियों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती। इसलिए इस बिल को लोकसभा में पास करवाने से पहले आम सहमती बनवाना चाहती है.
भारत का आज का राजनीतिक परिद्रश्य पूरी तरह से वोट बैंक की विचारधारा पर निर्भर है। आरक्षण बिल भी वोट बैंक की राजनीती से अछूता नहीं है। आर जे डी , सपा और जनता दल का एक खेमा पूरी ताकत से इस बिल के विरोध में खड़ा है। यहाँ पर विरोध सामाजिक नहीं बल्कि राजनैतिक अधिक है।

यह सभी क्षेत्रीय दल इस बात से शशंकित है की अगर यह बिल कानून के रूप में लोकसभा में पास हो जायेगा, तो इस कानून की सबसे ज॒यादा मार इन राजनीतिक दलों पर पड़ेगी. अगर हम किसी भी क्षेत्रिय दल में महिला नेताओ की गिनती करे तो यह दहाई तक भी नहीं पहुचती है। इन दलों यही डर सता रहा है की अगर यह बिल लोकसभा में पास हो गया तो अगले लोकसभा में उनको जीत दिलाने वाले उमीद्वारो का टोटका पद जायेगा जायेगा ।

सत्ता पक्ष और ताकतवर विपक्ष के गठजोड़ को तोड़ने के लिए, लालू प्रसद यादव जी, मुलायम सिंह यादव जी ने एक नया फ़ॉर्मूला दिया है और वह है आरक्षण के अन्दर आरक्षण। इन राजनेताओ को यह पता है की भाजपा कभी भी इस बात को स्वीकार नहीं करेगी, और भाजपा का विरोध इस बिल को ठन्डे बसते में डालने के लिए काफी होगा।

केंद्र सरकार अगर सचे मन से इस बिल को पास करवाना चाहती है तो उसको पूरी इक्षाशक्ति के साथ में इस बिल को लोकसभा के पटल पर जल्दी से जल्दी लाना होगा। सरकार को जन भावना और राजनीतिक भावना के अंतर को समझाना चाहिए और यह बिल लोकसभा शीघ्रा-तिशीघ्र पास करवाना चाहिए।